औरतें जो सपने सच करती है
हमारे देश में साधारणतया कई दॐष्टिकोणों से स्त्राीमुङ्कित की अवधारणा तौली जाती है। ऐसे तो मुङ्कित की तरह ही स्त्राीमुङ्कित की भी कई अवधारणाएं हो सकती हैं, चूंकि प्रत्येक व्यङ्कित अपनी मुङ्कित की अलग अवधारणा रख सकता है। सापेक्षिक सिद्घांत के अन्तर्गत मुङ्कित को लेकर सबके अपनेअपने सपने हो सकते हैं। इसके बावजूद कुछ साझे मुद्दे ऐसे हैं, जो सभी के लिए समान हो सकते हैं। हालांकि कभीकभी देशकाल या भिन्न संदर्भों में भी ये सांझे मुद्दे या उनकी प्राथमिकताएं बदल जाया करती हैं। राजनीति या समाज के सामाजिक, आर्थिक या सांस्कॐतिक क्षेत्राों में स्त्राी ने प्रवेश करके यह सिद्घ कर दिया है कि वह सपने पूरा करने में सक्षम है। भले ऐसी स्त्रिायों की संख्या कम है। किन्तु वे समाज को एक आदर्श देकर प्रेरणा का स्रोत बनी हैं।
यदि मनुष्य महत्वाकांक्षी न हो तो वह मुर्दा कहलाता है और जो कौम सपने न देखे वह भी मुर्दा ही होती है। स्त्रिायां भी सपने देखती हैं, भले व्यावहार में उन्हें सपने देखने और उन्हें साकार करने की इजाज.त समाज ने नहीं दी,ङ्कयह एक हकीकत है कि पुरुषों के समान ही स्त्रिायां भी महत्वाकांक्षी होती हैं। वे भी सत्ताा हासिल करना चाहती हैंङ्कमाध्यम चाहे समाजसेवा हो, बिजनैस, बाजार या राजनीति अथवा सांस्कॐतिक मंच या फिर खुद अपना ही घर। वे कामयाब नहीं हो पातींङ्कये अलग बात है। जब स्त्राीमुङ्कित की अवधारणा इस रूप में नहीं पनपी थी, जिस रूप में आज हैङ्कउस युग में भी स्त्रिायों ने मुक्ति के सपने देखे हैं। यहां तक कि रजि या बेगम उस सपने के लिए मारी भी गयीं। ङ्कल्योपाट्रा ने पुरुषों को एहसास कराया कि स्त्राी के स्त्राीत्व की अपनी एक ताकत और सत्ताा होती है, जो पुरुष के शाऊनिज्म को पछाड सकती है। अपनी देह को एक हथियार बनाकर रूस की स्त्रिायों ने देश के लिए खुद को खतरों के हवाले कर, हिटलर के सामने भी मुश्किलें पैदा कर दी थीं। वे उनके खेमे में घुसकर, सेना के भेद लाने एवं देश को बचाने के लिए मर्यादा एवं नैतिकता जैसी सभी सीमाएं उलांघ गईं थीं। भारत में भी आई.एन.ए. की लक्ष्मीबाई एक ज्वलंत उदाहरण है। इन्दिरागांधी भी राजनीति दांवपेच में कम कुशल नहीं थीङ्कभले हमसे उनके विचार न मिलते हों किंतु उनकी कुशलता, स्टेट्समैनशिप और जनप्रियता को नकारा नहीं जा सकता।
2 टिप्पणियां:
सुन्दर लेखन।
अच्छा आलेख.
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