मंगलवार, 23 नवंबर 2010

अपनी जरूरत और अपने मन मुताबिक सजे संवरे स्त्री

रमणिका गुप्ता जी के आलेख " पुरुषनिर्मित सौन्दर्यकसौटी पर ही खुद को तोलती है औरते" पर वर्षा ने जो टिप्पणी की है उस के जवाब में रमणिका जी का कहना है कि स्त्री और पुरूष एक दुसरे के पूरक ही नहीं बल्कि एक दुसरे की कमजोरी भी हैं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं की पुरुष  स्त्री को अपनी दासी समझ कर उसके साथ हिंसक व्यवहार करे। स्त्री और पुरूष के बीच आकर्षण होना स्वाभाविक हैं और होना भी चाहिये, इसका यह मतलब नहीं कि महिला अपने आप को पुरूष की दासी समझे और पुरूष उस पर किसी भी तरह का प्रतिबंध लगाये और को किसी भी पुरूष को अपनी भावुकता के आगे झुकना पडे।
प्रेम से हुआ समर्पण गुलामी नहीं कहलाता लेकिन यदि समर्पण महिला की इच्छा के विरुद्ध किया गया गुलामी कहलाता है आज की स्त्री केवल ड्राइंगरूम की मूर्ती नहीं रह गयी है। वह अपने पेशे के अनुसार सजती संवरती रहती है और अपने स्वास्थय का ध्यान रखती है, हर औरत फिल्म नायिका  नहीं होती जिसे लुभाने के लिये सोंदर्य के आंकड़े पर खरा उतरना पडे। पुरूष अगर सजने के लिये जिम या पार्लर में जाते हैं तो केवल सुन्दर लगने के लिये नहीं बल्कि स्वस्थय रहने के लिये भी जाते है।
पु्रूष और महिला एक दुसरे को साथ दें और अपनी पहचान खुद बनायें, औरत अगर अपना सोंदर्य अपनी जरूरत के अनुसार निर्मित करे तो यह सही होगा आज वह नौकरी के लिये बाहर जाती है जहाँ उसे चुस्ती की आवश्यक्ता पडती है तब वह अपनी सुविधानुसार मेकअप करती है, पुरुष को लुभाने के लिये नहीं, मैं यह पुरूष के विरोध में नहीं बल्कि नारी अपनी पहचान और आत्मसम्मान के लिये सजे संवरे यही मेरा आश्य है वह किसी भी तरह से पुरूष के दबाव से मुक्त  हो 
मेरी कविता की पंक्तियाँ  हैं
मैं तुमसे मुक्त तो होना चाहती हूँ
इसका अर्थ यह नहीं है  की
मैं तुम्हारे  प्यार से मुक्त तो होना चाहती हूँ
मैं तो खुद को प्यार करना चाहती  हूँ

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