शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

भारतीय समाज में मां सबसे बड़ा वर्जनाओं का पिटाराः रमणिका गुप्ता

स्त्रीकाल के इस अंक के लिए यह यह माकूल समय नहीं है। यह विवादों का काल है, विरोध का काल है. भ्रष्टाचार का काल है, प्रतिरोध का काल है। हिन्दी की सुप्रसिद्ध लेखिका एवं कवयित्री रमणिका गुप्ता ने मेरी ई जोन की बातों पर सहमति व्यक्त करते हुए अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में यह बातें कहीं। अवसर था 24 सितंबर  को शाम चार बजे जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के सभागार में  आयोजित स्त्रीकाल पत्रिका के दलित स्त्रीवादः चुनौतियां और लक्ष्य विशेषांक के लोकार्पण के मौके पर आयोजित परिचर्चा का। रमणिका गुप्ता ने  कहा कि दलित स्त्रीवाद में मैं वाद वाद को उचित नहीं समझती। इसे आंदोलन मानती हूं। दलित स्त्री तीन तरह से शोषित है। दलित होने के कारण, स्त्री होने के कारण, और गरीब होने के कारण। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज में मां ही सबसे बड़ा वर्जनाओं का पिटारा है। वही सबसे ज्यादा रोक-टोक निषेध लादती है। साथ ही हमारी भाषा भी हमें गुलाम बनाती है। पति को स्वामी या मालिक पुकारा जाता है। यह गुलामी का भाव है। उन्होंने कहा कि दलित स्त्रीवादी आंदोलन चलाने के लिए हमें व्रत उपवास व पूजा-पाठ छोड़ने होंगे।  इससे पूर्व मेरी ई जोन ने कहा था कि 21 वीं सदी स्त्रीकाल की सदी नहीं यह विवादों और विकृतियों की सदी है। संघर्ष की शुरूआत है। 85 प्रतिशत महिलाएं पुरुषों पर आश्रित हैं। इस परिचर्चा का विषय प्रवर्तन पत्रिका के इस अंक की संपादक अनीता भारती ने किया। अन्य वक्ताओं में सुजाता पारमिता, मीना गोपाल, रजनी दिसोदिया, देवेंद्र चौबे और बजरंग बिहारी थे। इस मौके पर अनीता भारती ने कहा कि यह विशेषांक दलित स्त्री के श्रम और आंबेडकरवाद से प्रेरित मानवतावादी सोच को समर्पित है।
मीना गोपाल ने कहा कि स्त्रीवाद में अबतक मुख्यधारा की स्त्रियों पर काम हुआ है पर अन्य स्त्रियों पर नहीं। डांस बार के बंद होने पर चिंता जताते हुए उन्होंने इसे दलित स्त्री के श्रम से जुड़ा प्रश्न बताया। 

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