गुरुवार, 12 अगस्त 2010

विमर्श पुरुषों के प्रति बेवफाई का भला क्या मतलब?

अगर किसी महिला लेखिका ने आत्मकथा लिखी, तो उसे चरित्राहीन बताने की होड. लग जाती है। जबकि महात्मा गांधी ने भी अपनी आत्मकथा लिखी, सच बोला, लेकिन गांधी को तो किसी ने अद्गलील नहीं कहा। जबकि औरतें अगर अपनी जिंदगी का सच लोगों के सामने लाती हैं, तो पूरा समाज टूट पड ता है। आज भी पुरूच्च महिलाओं को भोग की वस्तु ही समझता है। लेकिन जब एक ऊंचे जिम्मेदारी के पद पर बैठा व्यङ्कित भी इस तरह की बातें करता है, तो ये सचमुच शर्मनाक स्थिति है। माफी मांगना तो महज एक दिखावा है नौकरी बचाने के लिए। दरअसल मानसिकता बदलनी चाहिए। हम प्रगतिशील सोच वाले साहित्यकारों को लेकर राष्ट्रपति से मिलने जाएंगे और उनसें आग्रह करेंगे कि ऐसे सामंतवादी सोच वाले लोगों को गरिमायुङ्कत पदों पर रहने का कोई अधिकार नहीं। ऐसे लोगों के कारण छात्राों की मानसिकता पर भी गहरा प्रभाव पड ेगा कल वे पीएचडी, शोध करेंगे, तो उन्हें विषयचयन में भी इस तरह के सोच का असर पड ेगा। यह समाज की अभिव्यङ्कित की स्वतंत्राता के लिए एक बड े खतरे की तरह है। पुरुष और स्त्राी को अपनी दिशा खुद तय करनी है। पुराना समाज अब नहीं रहा। सहजीवन का अधिकार देश के सर्वोच्च न्यायालय ने भी आमलोगों को दिया है। स्त्राी, पुरुष दोनों को अपनेअपने देह पर अधिकार है। वैश्यावॐत्तिा के लिए पुरुष स्त्राी के पास जाता है। उनको दरकार पड.ती है महिलाओं के देह को किराए पर लेने की। फिर पुरुष को सजा मिलनी
चाहिए या पेट पालने के लिए देह बेचती महिला को। स्त्राी अगर प्रेम करे तो कुलटा कहा जाता है। बिस्तर बदले, तो उसके लिए मर्द भी तो उतना ही दोषी है। अभी एक लड की वहां से मेरे पास आई जो आदिवासियों पर शोध करना चाहती थी। ङ्कयों नहीं करने देते ऐसे विषयों पर शोध? रवींद्र कालिया जी संपादक होने के नाते विभूति नारायण राय के साक्षात्कार को संपादित कर सकते थे। लेकिन इसके कारण पत्रिाका बिकती है, तो भला संपादित करने की जहमत ङ्कयों उठाई जाए? कॉमर्शियल प्रवॐत्तिा ही हावी हो तो सिद्घान्तों की बाते कौन करे? मुझे तो लगता है बेवफाई शद्ब ही विवादास्पद है। बेवफा शद्ब ही विवादास्पद है। बेवफा शद्ब पुरुष का गढ ा हुआ शद्ब है। अगर देश के प्रति बेवफाई करे तो इसे गद्‌दारी कहेंगे। लेकिन पुरुषों के प्रति बेवफाई का भला ङ्कया मतलब? ऐसे लोगों को तो कतई ऐसे पदों पर नहीं रहना चाहिए। नैतिकता होती तो खुद इस्तीफा दे देना चाहिए था। अब तो बहुत सारे पुरूच्च साहित्यकार भी धरनाप्रदर्शन में साथ जाने लगे है। उम्मीद है कि ममता कालिया भी लेखिका होने के नाते व्यवहार करेंगी, पत्नी के नाते नहीं। हमारे साथ बहुत से साहित्यकार राच्च्ट्रपति से मिलने जाएंगे और अपने विरोध से उन्हें अवगत कराएंगे।
                                        
८ अगस्त देशबन्धु, अखबार में एक साक्षात्कार

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