प्रकाशनार्थ
दिनांक - १-५-२०१०
सरकार मैला उठ्वाने वालो को सजा क्यो नही देती
रमणिका फाउनडेसन एवम सफाई कर्मचारी आन्दोलन द्वारा दिनांक ३० अप्रिल २०१० को भारतीय साहित्य अकादमी सभागार मे 'युद्धरत आम आदमी' के विशेषांक 'सृजन के आइने मे मलमुत्र ढोता भारत' एवम 'विचार कि कसौटी पर' पुस्तक के लोकार्पण समारोह मे विशिष्ट अतिथि - बरिष्ठ साहित्यकार एवम 'हँस' के सम्पादक श्री राजेन्द्र यादव ने दृष्टान्त देते हुए कहा "उपर से नीचे देखने पर एक समानता दिखाई देती है परन्तु जैसे -जैसे नीचे उतरते हैं , हमारे सामने बिभिन्न्ताएँ नजर आने लगती है / इन विविधताओं को नजदीक से देखने का पायोनियर काम रमणिका जी ने इस विशेषांक के माध्यम से किया है / दरअसल हम शारीरिक एवम भौतिक मलमुत्र ढोने से ज्यादा शास्त्रो का मलमुत्र ढो रहे हैं /
साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष विशिष्ट अतिथि एस. एस. नूर ने कहा "दरअसल शास्त्रों ने हमारे अवचेतन मन मे जाति और छुवाछुत को कुट कुट कर भर दिया है / अवचेतन से इसे मिटाना होगा / पन्जाब मे सभी कीर्तन करने वाले दलित होते हैं / कीर्तन होने टक उन्हे बराबर माना जाता है और फिर वे अछुत हो जाते हैं / रामानन्द कि हत्या के बाद पन्जाब मे रविदासियों ने कहना शुरु कर दिया है कि वे सिक्ख नही हैं / आज पन्जाब मे दलित खुद को आदि- धर्मी घोषित कर रहे हैं / उन्हे लगता है कि मुगलो के बिरुद्ध बहादुरी के इतिहास में वे किसी से कम नहीं रहें है / लेकिन जाट सिक्खों ने इस तथ्य को छिपाया / आज वे बेरोजगार हो रहे हैं /
रमणिका फाउनडेसन की अध्यक्षा रमणिका गुप्ता ने अपने अध्यक्षीय भाषण मे कार्यक्रम का उद्धेश्य बताते हुए कहा कि दलित अभी भी हिन्दु ही हैं / वह जाति से उबरे नही हैं / जो सदियों से गाली खाता आया है , कभी बोला नही है , अब वही कलम उठाकर अपनी बात लिख रहा है / मैला ढोने वाले समुदायों का अम्बेडकर के साथ न जुड़ने का एक कारण दलित आन्दोलन द्वारा उपेक्षा भी है / अपनी बात को आगे बढाते हुए उन्होने कहा कि उनका लेखन रोने से शुरु होकर आक्रोश तक पहुंचा है / रोने और आक्रोश कि कोइ लय नही होती है / जँहा तक साहित्य के क्लासिकल की बात है तो 'सच' किसी भी साहित्य से बडा होता है / जो मैला उठ्वाते है उन्हे आज तक सरकार के सजा नहीं दी, जबकि यह प्रतिबन्धित है /
विशेषांक की अतिथि सम्पादक सुशीला टाकभौरे ने इन अंको को तैयार करने से जुड़े अपने अनुभव बांटे और कहा कि "इस दोनो विशेषांको का उद्धेश्य है इन जातियो में चेतना उत्पन्न करना, गुलामी का एहसास कराना, ब्राह्मणबाद से सावधान होना , मानव गरिमा और स्वाभिमान का एहसास कराना, दलित जातियों मे एकता लाना तथा वाल्मिकी एवम सभी सफाई कर्मी जातियों किई समस्याओ से समाज को परिचित करना ताकी उनकी मानसिकता बदले /
रमेश चन्द्र मीणा ने अपने आलेख में कै महत्वपूर्ण बिन्दुओं को छुआ / उन्होने कहा 'मल - मुत्र ढोता भारत' किसी भी सामान्य समझ रखने वाले आदमी के लिए शर्म कि बात है / लोकतंत्र के आधी सदी के बाद भी अगर ऐसी अमानवीय प्रथा इस देश मे चल रही है तो यह शर्मनाक न केवल एक व्यक्ति व समाज के लिए है अपितु पुरे देश के लिए है / सरकार को जगाने के लिए 'युद्धरत आम आदमी ' की उँची आवाज कि जरुरत है / ये दोनो अंक इस अर्थ मे सार्थक, कारगर और मुकम्मल हैं / कोइ समाज अपनी मर्जी से किसी दुसरे समाज का मल -मुत्र ढोता रहे बिना किसी ना - नुकर, के यह समझ से परे तो है ही, साथ-ही-साथ समाज बिशेष की क्रुरता, अमानवीयता को सामने लाता है / समाज की विसंगति को प्रगट करने वाला साहित्य परम्परागत साहित्य की जद से बाहर ही रहा है / समाज के हाशिये पर रहने वाला समाज हर उस माध्यम महरुम रखा गया है जिससे समाज मे परिवर्तन आ सकता था /
रमणिका फाउनडेसन की अध्यक्षा रमणिका गुप्ता ने अपने अध्यक्षीय भाषण मे कार्यक्रम का उद्धेश्य बताते हुए कहा कि दलित अभी भी हिन्दु ही हैं / वह जाति से उबरे नही हैं / जो सदियों से गाली खाता आया है , कभी बोला नही है , अब वही कलम उठाकर अपनी बात लिख रहा है / मैला ढोने वाले समुदायों का अम्बेडकर के साथ न जुड़ने का एक कारण दलित आन्दोलन द्वारा उपेक्षा भी है / अपनी बात को आगे बढाते हुए उन्होने कहा कि उनका लेखन रोने से शुरु होकर आक्रोश तक पहुंचा है / रोने और आक्रोश कि कोइ लय नही होती है / जँहा तक साहित्य के क्लासिकल की बात है तो 'सच' किसी भी साहित्य से बडा होता है / जो मैला उठ्वाते है उन्हे आज तक सरकार के सजा नहीं दी, जबकि यह प्रतिबन्धित है /
विशेषांक की अतिथि सम्पादक सुशीला टाकभौरे ने इन अंको को तैयार करने से जुड़े अपने अनुभव बांटे और कहा कि "इस दोनो विशेषांको का उद्धेश्य है इन जातियो में चेतना उत्पन्न करना, गुलामी का एहसास कराना, ब्राह्मणबाद से सावधान होना , मानव गरिमा और स्वाभिमान का एहसास कराना, दलित जातियों मे एकता लाना तथा वाल्मिकी एवम सभी सफाई कर्मी जातियों किई समस्याओ से समाज को परिचित करना ताकी उनकी मानसिकता बदले /
रमेश चन्द्र मीणा ने अपने आलेख में कै महत्वपूर्ण बिन्दुओं को छुआ / उन्होने कहा 'मल - मुत्र ढोता भारत' किसी भी सामान्य समझ रखने वाले आदमी के लिए शर्म कि बात है / लोकतंत्र के आधी सदी के बाद भी अगर ऐसी अमानवीय प्रथा इस देश मे चल रही है तो यह शर्मनाक न केवल एक व्यक्ति व समाज के लिए है अपितु पुरे देश के लिए है / सरकार को जगाने के लिए 'युद्धरत आम आदमी ' की उँची आवाज कि जरुरत है / ये दोनो अंक इस अर्थ मे सार्थक, कारगर और मुकम्मल हैं / कोइ समाज अपनी मर्जी से किसी दुसरे समाज का मल -मुत्र ढोता रहे बिना किसी ना - नुकर, के यह समझ से परे तो है ही, साथ-ही-साथ समाज बिशेष की क्रुरता, अमानवीयता को सामने लाता है / समाज की विसंगति को प्रगट करने वाला साहित्य परम्परागत साहित्य की जद से बाहर ही रहा है / समाज के हाशिये पर रहने वाला समाज हर उस माध्यम महरुम रखा गया है जिससे समाज मे परिवर्तन आ सकता था /
अजय नावरिया ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा की यह विशेषांक नए लेखको की एक आकाशगंगा है, जिसे रमणिका जी ने खोजा है / उन्होने समाज व दलितों की निर्मित छवि को लेकर मनोबैज्ञानिक सवाल उठाए /
रत्न कुमार साम्भरिया ने कहा "भारत बर्ष एक मात्र ऐसा देश है, जहाँ एक ही देश मे दो देश बसते हैं / सामाजिक व्यवस्था मे एक सवर्ण देश है, और दुसरा अवर्ण / यहाँ जिस देश की चर्चा की जा रही है, वह अस्पृश्यओ मे अस्पृश्य और दलितों मे दलित हैं / उस देश का नाम है मेहतर / उन्होने स्वीकार किया कि रमणिकाजी का यह कहना उचित है कि यदि भारत में एक व्यक्ति जो मैला ढोता है, तो पुरा भारत मैला ढोता है /
मस्तराम कपूर ने कहा कि दलितों को सकीर्ण भाव से सोचना नही चाहिए / गान्धी जी को गाली देने से आन्दोलन को कोइ लाभ नही होगा / १९३५ में गान्धी जी और डा. अम्बेडकर में अच्छी सहमती बन गइ थी /
जय प्रकाश कर्दम ने कहा कि गान्धीजी की सहमती डा. अम्बेडकर से बिल्कुल नहीं थी / जिन दिनो की बातें कपूर साहब ने की हैं उन दिनो उसी समय गोलमेज सम्मेलन में अम्बेडकर और गान्धी के मतभेद उजागर हो रहे थे /
बिमल थोरात ने कहा कि अब दलित जाग रहा है और आने वाले दिनों में मलमुत्र तो होगा, परन्तु मलमुत्र ढोने वाले नही होंगें /
सभा के अध्यक्ष एवम सफाई कर्मचारी आन्दोलन के अध्यक्ष विल्सन वैज्वाड़ा ने भावपूर्ण ढंग से अपने अनुभव बताते हुए कहा सबके अनुभव अलग-अलग जरुर हैं परन्तु कारण एक ही है, वह है जातिवाद /
रत्न कुमार साम्भरिया ने कहा "भारत बर्ष एक मात्र ऐसा देश है, जहाँ एक ही देश मे दो देश बसते हैं / सामाजिक व्यवस्था मे एक सवर्ण देश है, और दुसरा अवर्ण / यहाँ जिस देश की चर्चा की जा रही है, वह अस्पृश्यओ मे अस्पृश्य और दलितों मे दलित हैं / उस देश का नाम है मेहतर / उन्होने स्वीकार किया कि रमणिकाजी का यह कहना उचित है कि यदि भारत में एक व्यक्ति जो मैला ढोता है, तो पुरा भारत मैला ढोता है /
मस्तराम कपूर ने कहा कि दलितों को सकीर्ण भाव से सोचना नही चाहिए / गान्धी जी को गाली देने से आन्दोलन को कोइ लाभ नही होगा / १९३५ में गान्धी जी और डा. अम्बेडकर में अच्छी सहमती बन गइ थी /
जय प्रकाश कर्दम ने कहा कि गान्धीजी की सहमती डा. अम्बेडकर से बिल्कुल नहीं थी / जिन दिनो की बातें कपूर साहब ने की हैं उन दिनो उसी समय गोलमेज सम्मेलन में अम्बेडकर और गान्धी के मतभेद उजागर हो रहे थे /
बिमल थोरात ने कहा कि अब दलित जाग रहा है और आने वाले दिनों में मलमुत्र तो होगा, परन्तु मलमुत्र ढोने वाले नही होंगें /
सभा के अध्यक्ष एवम सफाई कर्मचारी आन्दोलन के अध्यक्ष विल्सन वैज्वाड़ा ने भावपूर्ण ढंग से अपने अनुभव बताते हुए कहा सबके अनुभव अलग-अलग जरुर हैं परन्तु कारण एक ही है, वह है जातिवाद /
अन्त में रमणिका फाउन्देसन के प्रचार प्रभारी सुधीर सागर ने धन्यबाद ज्ञापन किया /
डा. सुधीर सागर
मीडिया प्रभारी,युद्धरत आम आदमी
ए. २२१, डिफेन्स कलोनी
नई दिल्ली -२४, फोन न . २४४३३३३५६
2 टिप्पणियां:
आभार जानकारी का!१
एक अपील:
विवादकर्ता की कुछ मजबूरियाँ रही होंगी अतः उन्हें क्षमा करते हुए विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.
-समीर लाल ’समीर’
दरअसल शास्त्रों ने हमारे अवचेतन मन मे जाति और छुवाछुत को कुट कुट कर भर दिया है...अवचेतन से इसे मिटाना होगा ...
I agree.
एक टिप्पणी भेजें