रविवार, 21 मार्च 2010

आदिवासी ने तीर क्यों चलाया

पहला खण्ड

आदिवासी ने तीर क्यों चलाया?

आदिवासी ने तीर चलाया

हवा में पसर गया एक वक्तव्य

आखिर आदिवासी ने तीर क्यों चलाया?

ट्रैक्टर के ड्राइवर को ही

निशाना क्यों बनाया ?

ड्राइवर था सर्वहारा किसान का ही बेटा

तीर-सा एक प्रश्न उठा

वक्तव्य से टकराया
 
उठा एक बवंडर


चकरर्घिन्नी-सा

पुर्णियां से पलामू

पलामू से पटना

पटना से पाटन और

फिर देश के हर जंगल में

गाँव के बहिष्करत टोलों में

नगर के स्लम्स में

छिड. गई बहस


''आखिर आदिवासी ने तीर क्यों चलाया?**

प्रश्न से प्रश्न टकराए

बहसमुबाहिसे बन भिड़ गए

टोलाटोला, गाँवगाँव

नगरनगर गर्माने लगे

और लाललाल खून बिखर कर धरती पर

तीर के भेद खोलने लगा

''ड्राइवर लुटेरों का पक्षधर और

हथियार था उसी के वर्ग का

उसी की जमात का

पर जात और मजहब में जकड

ड्राइवर वह एक गुलाम था**

माटीसी हकीकत धरती के वक्ष पर निखर गई
 
लुटेरे जमींदार ने


सलाह लेकर अपनी जमात से

बुलायी थी अपनी जातङ्क

उसी जमींदार पर आश्रित जो

रोज लुटती थी उसी के हाथों

वह गरीब भूमिहीनवंचित जात

उठ खड.ी हुई थी उस दिन

जात और मजहब के नाम पर

चल पड ी थी अपनी ही जमात को जिन्दा जलाने



एक पैला धान या एक बोतल दारू के बदले

हथियायी थी जमींदार ने या

उसके बाप ने

या उसके बाप के बाप ने जो जमीन

वापिस माँग रहे थे आदिवासी

आज अपनी चुराई जमीन

वापिस माँग रहे थे वे अपनी ठगी हुई फसल

और मांग रहे थे सूद के पैसों का हिसाब!
पर कौन सुनता उनका तर्क?


आमनेसामने जमींदार नहीं

थे एक ही जमात के लोग

कि गोली चली

और फिर तीरों की रफ्तार बढ. गई

गोली से भी ज्यादा!





कचहरी के हाकिम ने

कोर्ट के कारिन्दे ने

पंचायत के मुखियासरपंच ने

कोर्ट में गवाही दी

जमींदार के पक्ष में
 
कोर्ट में


जमींदार के वकील ने

उड.ा दिए थे परख् ाचे सच्ची गवाही के

ट्ठाुनियेसा धुन दिया था वकील नेङ्क

रूईसा बेदाग सच/और

जमीनी हकीकत की

कर दी थी बोलती बंद

गूंगा /हङ्ककाबङ्कका/गुमसुम हतप्रभ चुप

सरकारी वकील

कौन जाने चुप्पी की कितनी कीमत

चुकाई थी जमींदार ने

न्याय के तराजू के पलड े में

झूठ का वजनदार बटखरा

भारी पड गया था

पारदर्शी सच पर
 
जहाँ न्याय अंधा हो


और कानून बहरा

कोर्टकचहरी खड.ी

झूठी गवाही की नींव पर

कौन देगा न्याय?

उस दिन भी

झूठ बन गया था सच

और सच झूठ

हमेशा की तरह उस दिन भी

हारा था एक मासूम और निर्दोष





पर

जिस दिन कोर्ट ने सुनाया फैसला

उसी दिन

हाँ उसी दिन

हकीकत की कलम ने लिखा था

एक और फैसला

हवा की कलम से

खेत के गजट में

सरेजमीन के पॐष्ठों परङ्क

''कि बहेगा खून

खूनङ्क

दोनों ओर के गरीबों का

ङ्कयोंकि सरकार और उसके कारिन्दे

समाज और उसके ठेकेदार

जात और बिरादर

कोर्टकचहरी और उसके साक्ष्य

प्रशासन और उसकी बन्दूक

सब के सब आदी हैं

झूठ के**

इकतरफा फैसला सुनने

मरने या मार दिए जाने को अभिशप्त

हैं आदिवासी



होकर भी

बेटी/बहन के बलात्कार का

चाक्षुसगवाह

गवाही के कायदे से अनजान

सच बोलता है केवल सच

पर गवाही तो हमेशा से

झूठ पर आश्रित है

कानून केवल गवाही

सुनता है

जो उसे देनी नहीं आती



जब बोल नहीं पाता आदिवासीङ्क

जब शद्ब हो जाते हैं गूंगे

जुबान हो जाती है जड

तो उसका गुस्सा

जुबान पे नहीं

हाथों में उतर आता है

हाथ

थाम लेते हैं तीर

तीर की नोक उसके बोले शद्बों को

तराशती

देती आकार

और फिर कमान से छूटते सरसराते तीर शद्बों से

अन्याय के खिलाफ

दर्ज कराते प्रतिवाद!

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